Sunday, March 10, 2013

बादलों को चुनौती...

आज फिर से बादलो के बीच उड़ने को तैयार हूँ,
एक नया आशियाँ ढूँढने को तैयार हूँ,
बन दीवाना बादलो पे गोले छोड़ने को तैयार हूँ,
बादलो ने सावन में संग अपने रुलाया है बहुत, आज उससे हिसाब करने को तैयार हूँ.....

महबूबा का आया पैगाम अभी ,बादलो को कहना सलाम सभी
सावन में हमने सपने सजाये बहुत, उसकी गर्जन में कभी घबराये बहुत
गीले तन में अरमानो को जगाये बहुत
दिवाली जैसी रंग और होली जैसी भंग, सावन ने रास रचाये बहुत......

मैं निकला हूँ वार करने को आज, बादलो से है अपनी पुरानी रंजिश,
गम के पायलो को भरती सावन की हाला
नैनो को करता गीला ,बढ़iता सदा प्यास,
बादल- कितना निर्दयी, है क्या तुझे ये एहसास…..

कहना उनका- बादलो से कुछ रिश्ता पुराना,
तुम कभी उससे न बैर निभाना ,
पुराना है साथी, गहरी है यादें!
सब भूला तुम उसे सदा गले लगाना…

भाषा में बोलूँ तो, Thy wish my command
महबूबा की खातिर बदलेगा सारा ब्रम्हांड
उनका पैगाम बादल तक पंहुचाऊंगा
अपने नगमे भी उसे सुनiऊंगा
डरता हूँ -कहीं दीवानगी से हैरान हो हमारी,
बादल भूल न जाये गरजना,
और ये हवाएं बेचारी , न कर दें शुरू सिसकना….

निकला था बादल को देने चुनौती .. आज प्रेम का सन्देश लाया हूँ
आज मिटाना था उसका वजूद , बाहू पाश में भरने आया हूँ ....

मिल बस आज बादलो में खोना चाहता हूँ
अपनी हस्ती मिटा , बस उसमे डूबना चाहता हूँ
हो सावन की बूंदे शीतल या कर्कश हों उसके गर्जन
आज उनमे सिमटना चाहता हूँ
आज बस आकाश में खोना चाहता हूँ....

रंग, धर्म, जाति , भाषा से बँटी ज़मीन,
उस ज़मीन पे नहीं लौटना चाहता हूँ
बादलो से कर दोस्ती......उनमे खोना चाहता हूँ
नहीं लौटना....बस उनमे डूबना चाहता हूँ......

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