Sunday, March 10, 2013

क्या क्या कहूं ?

क्या क्या कहूं ?

चौंदहवी का चाँद कहूँ ,या लाजवाब कहूँ

हूर कहूँ ,नूर कहूँ , या फ़िर आफताब कहूँ !



आपकी हर बात को खुदा का पैग़ाम कहूँ ,

आपकी खुशबू को मदिरालय का जाम कहूँ या फिर

आपके राग को कोयल की तान कहूं !



आपके साये को अपना जहान कहूं

आपके आँचल को बड़ा नादान कहूँ या फिर

आपके जुल्फों को घटाओं की शान कहूँ !



आपकी मुस्कुराहट को गीतकारों का साज कहूं,

आपकी हंसीं को घुंघरू की आवाज कहूं या फिर

आपकी बिंदिया को शहंशाहों का ताज कहूं !



क्या क्या नगमे कहूं तेरी खातिर में , मलिका,

क्या हुस्न के सारे पैमानों को तुम्हारी जागीर कहूं ?



भोलेपन को तुम्हारा सिपहसलार कहूं

बेरूखी को तुम्हारा प्यार कहूं

दीवानगी को अपनी , तुम्हारा नासूर या तुम्हारा संसार कहूं ?



कहता हीन फिरा हूँ ,थकता हीन फिरा हूँ

मृग बन कस्तूरी ढूँढता हीन फिरा हूँ !



मोहतरमा

तेरे इस सुन कर अनसुना कर देने को

देख कर अनदेखा कर देने को

समझ कर नासमझ बन जाने को

इतना बुलाने पे भी बाहुपाश में आने को ..

दूरियाँ कहूं या नजदीकियां कहूं !!

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