Sunday, August 1, 2010

तुम हो!

तुम हो!

मेरी चुप्पी मे .. तुम हो
मेरे शब्दों में भी ... तुम हो

मीठी बातों की सीमा रेखा , प्यार की फुलझरियां .. तुम हो
अनर्गल कटु शब्दों में भी... तुम हो

मुख से निकले बाण मेरे.... वो भी तुम हो
अधरों से गिरे फूल... तुम हो

मन में बसी पीड़ा ... तुम हो
मेरे विशाल ह्रदय का, प्यार , बेशुमार .... तुम हो

मेरे माथे पे पसीने की बूँदें ... तुम हो
उसे सुखाता शीतल हवा का झोंका ... तुम हो

रोष से लोहित हुआ मेरा चेहरा...तुम हो
मेरा हर्ष .. तुम हो! मेरा उल्लास भी.. तुम हो!

मैं में .. तुम हो
मैं हीं.. तुम हो!
मैं भी .. तुम हो