हकीकत की तो आदत है .. बिखर जाती है टूट कर
एक सपना है, जिसे बनाया है मैने ..हकीकत के टुकड़ों को जोड़ कर
एक सपना है, जिसमे उन्मुक्त गगन में उड़ने के सपने देखता हूँ
एक सपना है , जहाँ ना कुरुक्षेत्रा....न पोखरण
सिर्फ अमन का आसमान देखता हूँ ....
एक सपना है, जहाँ न विरोध, न अवरोध .....
सिर्फ द्रुतगामी देखता हूँ.....
एक सपना है, जहाँ ना वृक्ष.....न फल
सिर्फ परिंदे की आँख देखता हूँ.....
एक सपना है ,जहाँ न कलह ..... न क्लेश
सिर्फ शांन्ति देखता हूँ......
एक सपना है ,जहाँ न पराये...... न दुश्मन ,
सिर्फ वसुधैव कुटुम्बकम देखता हूँ.....
एक सपना है, जहाँ न द्वेष .. न जलन ..
सिर्फ इश्क की इनायात देखता हूँ
एक सपना है, जिसमे मैं सारे ऐसे हीन सपने देखता हूँ
एक सपना है , जिसमे इन सपनों को सच में बदलते देखता हूँ
एक सपना ही तो है, जो ऋतू सावन सा है
मैं इन सपनो में .. मस्त सावन को संवरते देखता हूँ
एक सपना ही तो है, मेरा अपना ही तो है
अब बस एक बार आंखे ख़ोल लूँ ....
चलना है आखिर हकीकत की ज़मीन पर !!!!
एक सपना है, जिसे बनाया है मैने ..हकीकत के टुकड़ों को जोड़ कर
एक सपना है, जिसमे उन्मुक्त गगन में उड़ने के सपने देखता हूँ
एक सपना है , जहाँ ना कुरुक्षेत्रा....न पोखरण
सिर्फ अमन का आसमान देखता हूँ ....
एक सपना है, जहाँ न विरोध, न अवरोध .....
सिर्फ द्रुतगामी देखता हूँ.....
एक सपना है, जहाँ ना वृक्ष.....न फल
सिर्फ परिंदे की आँख देखता हूँ.....
एक सपना है ,जहाँ न कलह ..... न क्लेश
सिर्फ शांन्ति देखता हूँ......
एक सपना है ,जहाँ न पराये...... न दुश्मन ,
सिर्फ वसुधैव कुटुम्बकम देखता हूँ.....
एक सपना है, जहाँ न द्वेष .. न जलन ..
सिर्फ इश्क की इनायात देखता हूँ
एक सपना है, जिसमे मैं सारे ऐसे हीन सपने देखता हूँ
एक सपना है , जिसमे इन सपनों को सच में बदलते देखता हूँ
एक सपना ही तो है, जो ऋतू सावन सा है
मैं इन सपनो में .. मस्त सावन को संवरते देखता हूँ
एक सपना ही तो है, मेरा अपना ही तो है
अब बस एक बार आंखे ख़ोल लूँ ....
चलना है आखिर हकीकत की ज़मीन पर !!!!
No comments:
Post a Comment