जब अस्पष्ट थी ये ज़िन्दगी.....
तो अस्पष्ट था मेरा प्यार....
आज सुलझी है ज़िन्दगी....
आज करूँगा बेहद प्यार....
ना जाने कितने विलम्ब .....ना जाने कितने सैलाब...
कल की मेरी संकोचता.......थी मेरी असमर्थता ....
आज मैं बोलूं नटखट बोल....झूमेगा सावन , वसंती भी बजाएगी ढोल ...
कल थी तुम मेरी ख़ामोशी...आज बन गयी मेरी मदहोशी.....
तुमसे इकरार बेशुमार....तो क्यों ना तुमसे करूँ तकरार.....
तुम अदब , तुम ही मज़हब ....
तुम लाल किताब...तुमसे प्यार बेहिसाब....
मर्ज़ भी तुम , दवा भी तुम....
तुम ही गीत, तुम ही प्रीत...
कैसे कहूँ? क्यों कहूँ ? .........क्या कह दूँ ?
तुम मेरा परितोष.....तुम मेरा संतोष !
तो अस्पष्ट था मेरा प्यार....
आज सुलझी है ज़िन्दगी....
आज करूँगा बेहद प्यार....
ना जाने कितने विलम्ब .....ना जाने कितने सैलाब...
कल की मेरी संकोचता.......थी मेरी असमर्थता ....
आज मैं बोलूं नटखट बोल....झूमेगा सावन , वसंती भी बजाएगी ढोल ...
कल थी तुम मेरी ख़ामोशी...आज बन गयी मेरी मदहोशी.....
तुमसे इकरार बेशुमार....तो क्यों ना तुमसे करूँ तकरार.....
तुम अदब , तुम ही मज़हब ....
तुम लाल किताब...तुमसे प्यार बेहिसाब....
मर्ज़ भी तुम , दवा भी तुम....
तुम ही गीत, तुम ही प्रीत...
कैसे कहूँ? क्यों कहूँ ? .........क्या कह दूँ ?
तुम मेरा परितोष.....तुम मेरा संतोष !
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