क्या क्या कहूं ?
चौंदहवी का चाँद कहूँ ,या लाजवाब कहूँ
हूर कहूँ ,नूर कहूँ , या फ़िर आफताब कहूँ !
आपकी हर बात को खुदा का पैग़ाम कहूँ ,
आपकी खुशबू को मदिरालय का जाम कहूँ या फिर
आपके राग को कोयल की तान कहूं !
आपके साये को अपना जहान कहूं
आपके आँचल को बड़ा नादान कहूँ या फिर
आपके जुल्फों को घटाओं की शान कहूँ !
आपकी मुस्कुराहट को गीतकारों का साज कहूं,
आपकी हंसीं को घुंघरू की आवाज कहूं या फिर
आपकी बिंदिया को शहंशाहों का ताज कहूं !
क्या क्या नगमे कहूं तेरी खातिर में , ए मलिका,
क्या हुस्न के सारे पैमानों को तुम्हारी जागीर कहूं ?
भोलेपन को तुम्हारा सिपहसलार कहूं
बेरूखी को तुम्हारा प्यार कहूं
दीवानगी को अपनी , तुम्हारा नासूर या तुम्हारा संसार कहूं ?
कहता हीन फिरा हूँ ,थकता हीन फिरा हूँ
मृग बन कस्तूरी ढूँढता हीन फिरा हूँ !
मोहतरमा
तेरे इस सुन कर अनसुना कर देने को
देख कर अनदेखा कर देने को
समझ कर नासमझ बन जाने को
इतना बुलाने पे भी बाहुपाश में न आने को ..
दूरियाँ कहूं या नजदीकियां कहूं !!
चौंदहवी का चाँद कहूँ ,या लाजवाब कहूँ
हूर कहूँ ,नूर कहूँ , या फ़िर आफताब कहूँ !
आपकी हर बात को खुदा का पैग़ाम कहूँ ,
आपकी खुशबू को मदिरालय का जाम कहूँ या फिर
आपके राग को कोयल की तान कहूं !
आपके साये को अपना जहान कहूं
आपके आँचल को बड़ा नादान कहूँ या फिर
आपके जुल्फों को घटाओं की शान कहूँ !
आपकी मुस्कुराहट को गीतकारों का साज कहूं,
आपकी हंसीं को घुंघरू की आवाज कहूं या फिर
आपकी बिंदिया को शहंशाहों का ताज कहूं !
क्या क्या नगमे कहूं तेरी खातिर में , ए मलिका,
क्या हुस्न के सारे पैमानों को तुम्हारी जागीर कहूं ?
भोलेपन को तुम्हारा सिपहसलार कहूं
बेरूखी को तुम्हारा प्यार कहूं
दीवानगी को अपनी , तुम्हारा नासूर या तुम्हारा संसार कहूं ?
कहता हीन फिरा हूँ ,थकता हीन फिरा हूँ
मृग बन कस्तूरी ढूँढता हीन फिरा हूँ !
मोहतरमा
तेरे इस सुन कर अनसुना कर देने को
देख कर अनदेखा कर देने को
समझ कर नासमझ बन जाने को
इतना बुलाने पे भी बाहुपाश में न आने को ..
दूरियाँ कहूं या नजदीकियां कहूं !!
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